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संधि की परिभाषा, प्रकार_स्वर संधि_ दीर्घ/वृद्धि/गुण/यण्/अयादि/संधि विच्छेद | sandhi, type of sandhi, svar sandhi_guna, vridhi, yan, ayadi, dirgh, udaharan

 

   संधि 

 संधि की परिभाषा, प्रकार_स्वर संधि_ दीर्घ/वृद्धि/गुण/यण्/अयादि/संधि विच्छेद


जब दो या दो से अधिक वर्ण पास-पास आते हैं तो कभी-कभी उनमें रूपांतर हो जाता है। इसी रूपांतर को 'संधि' कहते हैं।" संधि वहीं होती है, जहाँ ध्वनियों के संयोग के फलस्वरूप ध्वनि में परिवर्तन हो। ध्वनियों के पास-पास आने के बाद भी यदि उनमें परिवर्तन न हो तो उसे संधि नहीं संयोग कहा जाता है। उदाहरण - युगांतर (युग+अंतर)में संधि है जबकि युगबोध (युग+बोध) में संयोग है।

दूसरे शब्दों में :- 

              दो वर्णों के पास-पास आने पर जिस वर्ण (स्वर/व्यंजन/विसर्ग) में विकार होता है, उसी वर्ण के नाम से संधि कहलाती है। तीन प्रकार के वर्ण (स्वर, व्यंजन, विसर्ग) होने के कारण तथा इन तीनों में ही परिवर्तन हो जाने के कारण संधि तीन प्रकार की होती है-

(1) स्वर संधि

(2) व्यंजन संधि

(3) विसर्ग संधि। 

 

1.स्वर संधि

दो स्वरों के मेल से उत्पन्न हुआ विकार स्वर संधि कहलाता है। यह विकार पाँच रूपों में होता है इसलिए स्वर-संधि के पाँच प्रकार हैं- 

(1) दीर्घ स्वर संधि  

(2) गुण स्वर संधि

(3) वृद्धि स्वर संधि

(4) यण् संधि

(5) अयादि संधि। 

 


1. दीर्घ स्वर संधि :- 

जब एक ही स्वर के दो रूप' ह्रस्व (अ, , उ) और दीर्घ (आ, , ऊ) एक-दूसरे के बाद आ जाएँ तो दोनों मिलकर उसी स्वर का दीर्घवाला स्वर (अर्थात् आ, , ऊ) हो जाता है;

     

अ/आ + अ/आ= आ

अ+अ = आ

अंत्य +अक्षरी = अंत्याक्षरी ,      

अक्ष (धुरी) + अंश = अक्षांश                             

 अद्य (अभी तक की) + अवधि = अद्यावधि    

अधिक+अंश =अधिकांश ,  

अधिक + अधिक = अधिकाधिक     

अपर + अहन् =अपराण (अपराह्न)

(अपर के '' के कारण न का '' ) 

अर्ध + अंश = अर्धांश  ,    

आनंद + अतिरेक = आनंदातिरेक

उत्तर +अधिकार = उत्तराधिकार,  

उदय + अचल = उदयाचल 

उप + अध्याय (अधि+ आय) = उपाध्याय

ऊर्ध्व (ऊपर) + अधर (नीचे) = ऊर्ध्वाधर

ऊह +अपोह= ऊहापोह 

(अटकलों का हटाना, पूरा विचार करना)

काम + अयनी = कामायनी कीट (कीड़ा) + अणु = कीटाणु

क्रम + अंक = क्रमांक  , 

क्वथन + अंक = क्वथनांक

(द्रव से गैस बनने का बिंदु) 

गीत + अंजलि = गीतांजलि 

धर्म + अर्थ = धर्मार्थ

नयन + अंबु (पानी) = नयनांबु (आँसु) 

नयन + अभिराम (सुंदर) = नयनाभिराम

न्यून + पत्र + अधिक = न्यूनाधिक 

पत्र+अंक = पत्रांक

पद + अर्थ = पदार्थ

परम + अर्थ = परमार्थ

पूर्ण + अंक = पूर्णांक

पूर्व + अह्न (दिन) = पूर्वाण (पूर्वाह्न)

 [''का स्वर हटता है तथा 'न्' में '' स्वर का आगमन होता है। स्वर के साथ-साथ व्यंजन संधि भी पूर्व के 'र्' के कारण '' का '' )       

जीव + अश्म (पत्थर) = जीवाश्म (फोसिल) 

तिल + अंजलि (करसंपुट) = तिलांजलि

तीर्थ + अटन (भ्रमण) = तीर्थाटन 

दाव (वन) + अग्नि = दावाग्नि 

दिवस + अवसान (समाप्ति) = दिवसावसान 

दीप + अवली = दीपावली 

दृश्य + अवली (पंक्ति) = दृश्यावली

 देश + अटन (मात्रा) = देशाटन

प्र + अंगन = प्रांगण (नण व्यंजन )

प्र + अर्थी (इच्छुक) = प्रार्थी 

मध्य + अवधि = मध्यावधि

मध्य + अहन् (दिन) = मध्याह्न 

युुुुवन् + अवस्था = युवावस्था (न् का लोप) 

रस + अयन= रसायन (रसायण नहीं)

राम + अयन (मार्ग) = रामायण (व्यंजन संधि भी है, अतः न का ण) 

बात + अयन (मार्ग) = वातायन (खिड़की) 

विंध्य + अचल (पर्वत) = विंध्याचल

 विक्रम + अब्द (अप्+द= वर्ष) = विक्रमाब्द

सुषुप्त + अवस्था = सुषुप्तावस्था (सु+सुप्त-व्यंजन संधि)

स्व + अध्याय (अधि+आय) = स्वाध्याय 

हिम + अंशु (किरण) = हिमांशु (चंद्रमा)

हिम + अद्रि (पर्वत) = हिमाद्रि (हिमालय)

 हुत (हवन सामग्री) + असन (भोजन) = हुतासन

शत + अब्दी (अप्+दी) = शताब्दी 

शश (खरगोश) + अंक (लांछन) = शशांक 

शीत + अंशु = शीतांशु (चंद्रमा)

स + अवधान (ध्यान) = सावधान

सर्व + अंगीन = सर्वांगीण (न- का ण व्यंजन संधि भी)

सह + अनुभूति सहानुभूति 

सहस्र (हज़ार) + अब्दी (वर्षवाली) = सहस्राब्दी


अ + आ = आ

आम (आँव) + आशय (स्थान) = आमाशय

 (वह स्थान जहाँ आँव (म्यूकस) बनती है) 

आयुध (हथियार) + आगार (स्थान) = आयुधागार 

 कंटक + आकीर्ण (भरा हुआ) = कंटकाकीर्ण

कुश (डाभ घास) + आसन =कुशासन

गर्भ + आशय = गर्भाशय 

छात्र (छात्रा) + आवास = छात्रावास 

जन + आकीर्ण (भरा हुआ) = जनाकीर्ण (भीड़)         

जल + आशय (स्थान) = जलाशय

धूम (धुआँ) + आच्छादित (आ+छादित) = धूमाच्छादित

पंच + आयत = पंचायत

प्राण + आयाम (विस्तार) = प्राणायाम

भय + आक्रांत (पीड़ित) = भयाक्रांत 

मकर (मछली) + आकृति = मकराकृति

मरण + आसन्न (निकट) = मरणासन्न 

मेघ + आच्छन्न (ढका हुआ) (आ+ छन्न) = मेघाच्छन्न

यात + आयात (आना) = यातायात

विजय + आकांक्षी (इच्छुक) =विजयाकांक्षी

विवाद + आस्पद (पैदा करने वाला) = विवादास्पद 

शीत + आकुल (बेचैन) = शीताकुल   

सौभाग्य + आकांक्षिणी = सौभाग्याकांक्षिणी 

(सौभाग्य (पति) प्राप्त करने की इच्छा रखनेवाली) 

स्वर्ण + आम (चमक) = स्वर्णाभ

हास्य + आस्पद( पैदा होना) = हास्यास्पद

हिम + आलय = हिमालय 

हिम + आवृत (ढका हुआ) = हिमावृत 

 

 

आ + अ = आ 

क्रिया + अन्वयन (अनु + अयन) = क्रियान्वयन

तथा + अपि = तथापि 

द्राक्षा (दाख) + अरिष्ट (रस) = द्राक्षारिष्ट 

द्राक्षा + अवलेह (चटनी) = द्राक्षावलेह

द्वारका + अधीश (अधि+ईश)= द्वारकार्य 

निशा + अंत = निशांत (सुबह)

 पुरा (प्राचीन) + अवशेष = पुरावशेष

महा + अमात्य (मंत्री) = महामात्य

मुक्ता (मोती) + अवली/ आवली (पद पंक्ति)= मुक्तावली          

 

 

आ + आ = आ

कारा (सीमा) + आगार (घर) = कारागार

चिंता + आतुर = चिंतातुर

द्राक्षा (दाख) + आसव (रस) = द्राक्षासव 

निशा + आनन (मुख) = निशानन

प्रेक्षा (देखना)+ आगार = प्रेक्षागार (नाटकघर) 

भाषा + आबद्ध (बँधा हुआ) = भाषाबद्ध 

वार्ता + आलाप (स्वर) = वार्तालाप 

स्वेच्छा (स्व+इच्छा)+ आचार=स्वेच्छाचार

श्रद्धा + आलु = श्रद्धालु

 

, ई +इ, ई = ई 

इ + इ = ई

अति (दूर) + इत (है) = अतीत

अति + इंद्रिय = अतींद्रिय (इंद्रियों से परे)

अति + इव = अतीव

अधि + इन = अधीन

अधि + ईक्षक= अधीक्षक (देखनेवाला)

अधि + ईक्षण = अधीक्षण

कपि (वानर) + ईश = कपीश ( हनुमान / सुग्रीव)

गिरि + ईश= गिरीश (हिमालय)

परि + ईक्षक =परीक्षक

परि + ईक्षण =परीक्षण

प्रति + ईक्षा (देखना) = प्रतीक्षा (PSI 2018 )

योगिन् + ईश्वर = योगीश्वर (शिव, न का लोप)

वारि (जल) + ईश = वारीश (समुद्र)

वि + ईक्षण = वीक्षण (Invigilation )

 

ई + इ = ई

फणी (सॉप) + इंद्र = फणींद्र (शेषनाग)

महती (बड़ी) + इच्छा = महतीच्छा

मही (पृथ्वी) + इंद्र = महींद्र (राजा)

शची (इंद्र की पत्नी ) + इंद्र = शचंद्र (इंद्र) 

सुधी (ज्ञान) + इंद्र = सुधींद्र (विद्वान)

 

 

ई + ई = ई      

फणी (साँप) + ईश्वर =फणीश्वर (शेषनाग)

रजनी + ईश= रजनीश (चंद्रमा)

श्री (लक्ष्मी) + ईश = श्रीश (विष्णु)

सती + ईश = सतीश (शिव)

 

उ/ऊ + उ ऊ = ऊ

उ+उ = ऊ

अनु + उदित = अनूदित (अनुवाद किया हुआ)

कटु (कड़वा) + उक्ति = कटूक्ति

भानु + उदय= भानूदय

मंजु (सुंदर) + उषा (भोर) = मंजूषा 

मधु (बसंत) + उत्सव = मधूत्सव

मृत्यु +उपरांत (उपर+अंत) = मृत्यूपरांत

लघु +उत्तम= लघुत्तम

 

 उ+ ऊ = ऊ

लघु + ऊर्मि = लघुर्मि

सिंधु + ऊर्मि = सिंधूर्मि (समुद्र की लहर)

 भू (धरती) + उपरि (ऊपर) भूपरि

वधू (बहू) + उक्ति = वधूक्ति 

सरयू + ऊर्मि= सरबूर्मि (सरयू नदी की लहरें) 

 


2. गुण स्वर संधि :- 

जिस संधि का परिणाम '' और '' गुण स्वर होता है, उसे गुण स्वर संधि कहते हैं। गुण स्वर संधि में दो भिन्न-भिन्न स्थानों से उच्चरित होने वाले स्वरों के बीच संधि होती है और उसका परिणाम यह होता है कि मिलनेवाले दो स्वरों से भिन्न गुणवाला एक नया ही स्वर उत्पन्न हो जाता है जो इस प्रकार है - 

,आ+ इ ,  =  

,आ+ उ ,ऊ = ओ 

,आ+ ऋ    = अर्

स्पष्टीकरण :- जब जीभ को अ ,आ के बाद इ ,ई उच्चरित करना पड़े तो अ ,आ और इ ,ई के बीच पड़नेवाले '' को उच्चरित कर देती है । इसी प्रकार का प्रयत्न अ ,आ (खुले होंठ) और उ ,ऊ (गोल होंठ) के बीच '' (कुछ कम गोल होंठ) के उच्चारण में होता है। अ, आ और ऋ के संयोग से अर् बनता है जिसमें ऋ स्वर तो र् व्यंजन में बदल जाता है। 

 

अ+इ = ए 

अल्प + इच्छा = अल्पेच्छ (अंत में आ का अ)

इतर +इतर = इतरेतर (और और) 

उप +दिष्टा = उपदेष्टा कमांडर (अपवाद) 

(केवल ई-ए में बदल जाता है)

न + इति =नेति 

प्र + इषिति = प्रेषिति (पानेवाला)

बाल + इंदु (चंद्र) = बालेंदु (उगता हुआ चंद्रमा) 

 मानव + इतर (अलावा) =मानवेतर

 मृग + इंद्र =मृगेंद्र (शेर)

शुभ + इच्छा= शुभेच्छा 

शुभ + इच्छु = शुभेच्छु 

स्व +इच्छा =स्वेच्छा

 

अ+ ई = ए 

उप +ईक्षा = उपेक्षा

अंक + ईक्षण =अंकेक्षण (ऑडिट करना) 

अप +ईक्षा =अपेक्षा

प्र +ईक्षक =प्रेक्षक (दर्शक) 

स्व + ईरिणी = स्वैरिणी (नदी) 

(अपवाद अ + ईए न होकर ऐ) स्वे के स्थान पर स्वै)

 

 

आ + इ = ए

महा + इंद्र = महेंद्र

यथा + इच्छा यथेच्छ (आ का अ, अपवाद)

यथा + इष्ट= यथेष्ट ( उपयुक्त)

रसना +इंद्रिय =रसनेंद्रिय

 

आ + ई = ए

गुडाका (नींद) + ईश = गुडाकेश (शिव, अर्जुन)

महा + ईश्वर= महेश्वर

राका (चाँदनी रात) + ईश = राकेश (चंद्रमा)

 

अ / आ + उ / ऊ = ओ

अ+उ =ओ

अन्य +उदर =अन्योदर (विमाता से जन्मा भाई) 

अन्यान्य (अन्य + अन्य ) +उपाय = अन्यान्योपाय 

अवनत +उदर =अवनतोदर (पेट अंदर धसा हुआ) 

आत्म + उत्सर्ग (त्याग) (उद्+सर्ग) = आत्मोसर्ग   (स्वयं का त्याग)

आद्य + उपांत (उप+अंत) = आद्योपांत 

(आदि + य प्रत्यय =आद्य (शुरूवाला ) 

उन्नत (उद्+नत) (ऊँचा) + उदर = उन्नतोदर (पेट बाहर निकला हुआ) 

दर्प (गर्व) + उक्ति = दर्पोक्ति

दलित + उत्थान (उद्+स्थान) = दलितोत्थान 

धीर + उद्धत (उद्+हत) = धीरोद्धत (उदंड) 

नव +उत्पल (उद्+पल) (कमल)=नवोदय 

नव + उन्मेष (उद्+मेष) = नवोन्मेष (नया पैदा होना)

पद +उन्नति (उद्+नति) = पदोन्नति

पर+ उपकार= परोपकार

पुष्प + उपहार = पुष्पोपहार 

 प्र + उत्साहन (उद्+साहन) = प्रोत्साहन 

यज्ञ+ उपवीत = यज्ञोपवीत (जनेऊ धारण करने का संस्कार) 

उन्नत (उद्+नत) (ऊँचा) + उदर= उन्नतोदर (पेट बाहर निकला हुआ) 

चरम +उत्कृष्ट (उद्+कृष्ट) = चरमोत्कृष्ट 

प्राप्त + उदक (जल) = प्राप्तोदक 

(जिस मृतात्मा/गाँव को जल मिल गया है)

मंत्र + उच्चार (उद् + चार) = मंत्रोच्चार 

मरण +उपरांत (उपर+अंत) = मरणोपरांत 

मुख +उपाध्याय (उप अघि + आब = मुखोपाध्याय

लंब +उदर = लंबोदर 

शुद्ध + ओदन (भोजन/चावल) = शुद्धोदन 

(अपवाद - अ+उ = ओ ,लेकिन यहाँ अ+ओ = ओ बन रहा है )

स + उल्लास (उद्+लास) = सोल्लास 

सह + उदर =सहोदर (माँ जाया भाई)

सांग (स+अंग) + उपांग (उप+अंग) = सांगोपांग 

स्व+उपार्जित (उप+अर्जित) = स्वोपार्जित

(स्वयं द्वारा कमाया हुआ) 

हत (रहित) + उत्साह (उद्+साह) = हतोत्साह 

हिम + उपल (पत्थर) = हिमोपल (ओले)

 

आ + उ =ओ

क्षुधा + उत्तेजन (उद्+तेजन) = क्षुधोत्तेजन

महा + उत्सव (उद्+सव) = महोत्सव

यथा + उचित =यथोचित 

 

संधि नहीं संयोग वाले शब्द :-

तद् + उपरांत =तदुपरांत

तद् + रूप = तद्रूप

सत् + उपयोग = सदुपयोग

सत् + उद्योग = सद्योग।

 

अ + ऊ = ओ

अक्ष + ऊहिनी = अक्षौहिणी (सेना) (अपवाद)

जल + ऊर्मि (लहर) = जलोमि

नव + ऊढा (उम्रवाली) = नवोढा (नवविवाहिता)

 

आ + ऊ = ओ

गंगा + ऊर्मि ( लहर) = गंगोर्मि

महा + ऊर्जा = महोर्जा

 

 

अ/आ + ऋ = अर् 

अ + ऋ = अर्

कण्व + ऋषि कण्वर्षि

ग्रीष्म ऋतु = ग्रीष्मर्तु

देव + ऋषि = देवर्षि

राजन् (राज) + ऋषि = राजर्षि (न् का लोप)

शीत + ऋतु शीतर्तु

 

आ + ऋ = अर्

महा + ऋषि = महर्षि

वर्षा + ऋतु = वर्षतुं

 


3.वृद्धि स्वर संधि

,आ के बाद ए ,ऐ आए तो '' तथा अ ,आ के बाद ओ ,औ आए तो '' हो जाता है। ऐ तथा औ स्वर वृद्धि स्वर कहलाते हैं, अतः यह संधि वृद्धि स्वर संधि कहलाती है

 

 अ / आ + ए /ऐ =ऐ

अ+ए = ऐ

एक + एक = एकैक

धन + एषणा धनैषणा

धन एषी = धनैषी

पुत्र +एषणा= पुत्रैषणा 

प्रिय +एषी =प्रियैषी

वित्त + एषणा = वित्तैषणा

शुभ +एषी =शुभैषी

 हित+ एषी (चाहनेवाला) = हितैषी

 

आ + ए = ऐ

तथा +एव = तथैव (वैसे ही)

वसुधा + एव (ही) = वसुधैव

सदा +एव = सदैव 

 

अ + ऐ = ऐ

मत + ऐक्य (एकता) = मतैक्य

विश्व + ऐक्य =विश्वैक्य

स्व + ऐच्छिक =स्वैच्छिक

 

आ + ऐ= ऐ

महा + ऐश्वर्य = महेश्वर्य

 

अ / आ + ओ / औ= औ

 

अ +ओ = औ

अधर (नीचेवाला) + ओष्ठ = अधरोष्ठ

(अपवाद - अ+ओ =औ लेकिन यहाँ ओ ही बन रहा है)

जल + ओघ = जलौघ (जल का प्रवाह)

दंत + ओष्ठ्य / औष्ठ्य = दंतोष्ठ्य (अपवाद) = (यहाँ गुण संधि है- ओ-गुण स्वर)

मंत्र + औषध = मंत्रौषध

 

अ + औ = औ

अक्ष (धुरी) + ऊहिनी (डटी रहनेवाली)= अक्षौहिणी (सेना) (अपवाद)

(अ+ऊ होना चाहिए था किंतु इसको बोला गया अक्षौहिणी, अतः वृद्धि संधि है)

जल + औषध = जलौषध

जल + औषधि = जलौषधि   (औषधि और औषध दोनों रूप प्रचलित)

प्र + ऊद (उम्र) = प्रौढ़ (अपवाद) 

(अ+उ = ओ होना चाहिए था किंतु उसको बोला गया- प्रौढ़, अतः वृद्धि संधि है।)

परम + औदार्य = परमौदार्य

परम + औषध = परमौषध

मंत्र + औषधि =मंत्रौषधि

 

आ + ओ = औ

महा + ओज (कांति) = महौज

 

आ + औ = औ

महा + औषध महौषध

महा + औषधि = महौषधि

 

 

4. यण् संधि

कुछ स्वर आपस में संधि करने पर किसी स्वर में बदलने के बजाय य् ,र् ,ल् ,व व्यंजनों बदल जाते हैं। जिस संधि का परिणाम य् र् ल् व् (यण) होता है, उसे यण संधि कहा गया है।  इ ई उ ऊ और के बाद कोई भिन्न (असवर्ण) स्वर आए तो इ ई का य्, उ ऊ का व् तथा ऋ का र् हो जाता है। 

इ/ई स्वर तो य् में बदल जाता है किंतु इ/ई स्वर जिस व्यंजन के लगा होता है वह इ ई के य् में बदल जाने पर स्वर-रहित हो जाता है। इसलिए यण संधि में य् व् र् के पहले के व्यंजन स्वर-रहित रहते हैं,

जैसे :- अभि + अंतर = अभ्यंतर, अभ्यंतर में य् के पहले भ् , स्वर-रहित है।

 इस प्रकार शब्द के बीच में य् र् व् , के पहले स्वर रहित व्यंजन का होना यण् संधि की पहचान है।  

 

यण् सन्धि युक्त पदों का विच्छेद करने के लिए याद रखने योग्य तीन बातें:

यदि किसी शब्द में किसी आधे अक्षर के बाद य/व/र लिखा हुआ हो अंश का विच्छेद करना हो तो निम्न तरीका काम में ले सकते हैं

1.सर्वप्रथम जिस आधे अक्षर के बाद य/व् र लिखा हुआ हो, उस आधे अक्षर को पूरा लिख दो ।

2.फिर य/व/र वर्ण की उपस्थिति के अनुसार उसके क्रमश: इ ई उ ऊ ऋ की मात्रा लगा दो।

3. यू/व्/र् को छोड़कर शेष शब्दांश को धन (+) चिह्न के आगे लिख दो। 

जैसे हमें 'व्यायाम' शब्द का विच्छेद करना है। इस शब्द में आधे अक्षर 'व्' के बाद '' लिखा हुआ है तो उपर्युक्त नियमानुसार हम इस प्रकार विच्छेद कर सकते हैं-

1.सर्वप्रथम आधे अक्षर 'व्' को पूरा '' लिख दिया।

 2. फिर 'व्' के आगे 'य्' लिखा होने के कारण इस (व) के '' की मात्रा लगा देते हैं तो 'वि' बन जाता है।

3. फिर 'य्' को छोड़कर शेष शब्दांश (आयाम) धन (+) चिह्न के आगे लिख देंगे। 'इस प्रकार 'व्यायाम' का विच्छेद होगा-   वि + आयाम

 

 इ/ई + आसमान स्वर = य्

(स्वर य् में जुड़ा हुआ होगा ) 

 

इ + अ = य

अति + अंत = अत्यंत

अति + अधिक =अत्यधिक

अति + अल्प = अत्यल्प

परि + अंत = पर्यंत

परि + अटन (भ्रमण) = पर्यटन

परि + अवसान (अंत) = पर्यवसान

परि + अवेक्षक (अव + ईक्षक) = पर्यवेक्षक(Supervisor)

परि + अवेक्षण (अव+ईक्षण) (देखना) = पर्यवेक्षण

प्रति + अंचा (खिंचना) = प्रत्यंचा

प्रति + अंतर = प्रत्यंतर

प्रति + अक्षि/अक्ष (आँख) = प्रत्यक्ष

प्रति + अपकार = प्रत्यपकार

(अपकार (बुराई) के बदले अपकार करना)

प्रति + अर्पण = प्रत्यर्पण (लेने के बदले कुछ देना

मति (बुद्धि) + अनुसार= मत्यनुसार

यदि + अपि (भी) = यद्यपि

राशि + अंतरण (परिवर्तन) = राश्यंतरण

(नक्षत्रों का एक राशि से दूसरी राशि में परिवर्तन)

रीति + अनुसार = रीत्यनुसार

अधि (ऊपर) + अयन (गति /मार्ग) = अध्ययन

अधि + अक्षर = अध्यक्षर

अघि + अक्षि / अक्ष = अध्यक्ष (इ का लोप)

अभि + अर्थना (इच्छा) = अभ्यर्थना

अभि + अर्थी (इच्छुक) = अभ्यर्थी

आदि + अंत = आद्यंत (शुरू और अंत)

इति + अलम् = इत्यलम्  (और नहीं, बस)

गति + अनुसार = गत्यनुसार

गति + अवरोध (व्यवधान) = गत्यवरोध

त्रि + अंबक (आँख) = त्र्यंबक (शिव)

नि + अस्त (जुटे होना) = न्यस्त

परि + अंक = पर्यंक (पलंग)

परि + अंत = पर्यंत

परि + अवसान (अंत) = पर्यवसान

परि + अवेक्षक (अव + ईक्षक) = पर्यवेक्षक (Supervisor)

परि + अटन (भ्रमण) = पर्यटन

प्रति + अंतर = प्रत्यंतर

प्रति + अक्षि/अक्ष (आँख) = प्रत्यक्ष

प्रति + अपकार = प्रत्यपकार (अपकार (बुराई) के बदले अपकार करना)

प्रति + अभिज्ञ (अच्छी तरह से जाननेवाला) = प्रत्यभिज्ञ

प्रति + अंचा (खिंचना) = प्रत्यंचा

प्रति + अर्पण = प्रत्यर्पण (भेंट के बदले भेंट )

मति (बुद्धि) + अनुसार = मत्यनुसार

यदि + अपि (भी) = यद्यपि

प्रति + अय = प्रत्यय

रीति + अनुसार = रीत्यनुसार

वि + अक्त (प्रकट) = व्यक्त

वि + अभिचार = व्यभिचार

वि + अर्थ = व्यर्थ

वि + अष्टि (इकाई) = व्यष्टि

वि + अस्त = व्यस्त

वि + अय (मंगलकारी कार्य) = व्यय

स्वस्ति (सु+अस्ति) + अयन= स्वस्त्ययन  (कल्याण का मार्ग)

वि + अवहार = व्यवहार

 

इ + आ = या

अघि + आय = अध्याय

अग्नि + आशय (स्थान) = अग्न्याशय

अति + आचार = अत्याचार

अधि (उच्च) + आपक = अध्यापक

(विद्यार्थी की चेतना को सब ओर से उच्च स्तर पर लानेवाला)

अघि (ऊँचा) + आदेश = अध्यादेश (Ordinance)

अघि + आत्म अध्यात्म

अभि + आगत = अभ्यागत (मेहमान)

अति + आवश्यक = अत्यावश्यक

अभि + आस (प्रयत्न) = अभ्यास

इति+ आदि = इत्यादि

ध्वनि + आत्मक= ध्वन्यात्मक

नि + आय (आगमन) = न्याय

परि + आप्त = पर्याप्त

परि +आय = पर्याय

परि + आवरण = पर्यावरण

नि + आस (संरचना) = न्यास

प्रति + आख्यान (कहना) = प्रत्याख्यान(खंडन करना)

प्रति + आशा = प्रत्याशा

प्रति + आशित = प्रत्याशित (आशानुरूप)

प्रति + आशी = प्रत्याशी (योग्यता के बदले आशा)

वि + आकरण (आ+करण) = व्याकरण

(भाषा का विश्लेषण करनेवाला)

वि + आकुल (बेचैन) = व्याकुल

 वि + आख्यान = व्याख्यान

वि + आघात = व्याघात

वि + आप्त (फैलना) = व्याप्त

वि + आयाम (विस्तार) = व्यायाम

वि + आवर्तन (लौटकर आना) = व्यावर्तन

प्रति + आरोपण = प्रत्यारोपण

वि + आस (निकट) = व्यास

(देवता के निकट कथावाचन करनेवाला)

 

इ + उ = यु

अति + उक्ति =अत्युक्ति

अति + उत्तम (उद्+तम) = अत्युत्तम

अति + उष्ण (गर्म) = अत्युष्ण

अभि + उत्थान (उद्+स्थान) =अभ्युत्थान

प्रति + आवर्तन = (लौटना) प्रत्यावर्तन

अभि + उदय = अभ्युदय

उपरि + उक्त = उपर्युक्त

परि + उषण (रसहीन खाना) = पर्युषण

प्रति + उत्तर = प्रत्युत्तर

प्रति + उत्पन्न (उद् +पन्न) = प्रत्युत्पन्न

प्रति + उपकार= प्रत्युपकार (उत्तर के बदले उत्तर)

वि + उत्पत्ति (उद् + पत्ति) = व्युत्पत्ति

 

इ + ऊ = यू

नि + ऊन (कम) = न्यून

प्रति + ऊह (तर्क / विचार) = प्रत्यूह

 वि + ऊह (विचार) = व्यूह

प्रति +ऊप = प्रत्यूष (प्रातः काल) 

 

ई+अ= य

देवी +अर्पण = देव्यर्पण

नदी+अर्पण (भेंट) =नद्यर्पण  

 

ई+ आ = आ

नदी +आमुख = नद्यामुख

मही (पृथ्वी) + आधार = मह्वाधार

सखी+आगमन = सख्यागमन

 

ई+उ = यु

नारी + उद्धार = नार्युद्धार

नारी + उचित = नार्युचित

स्त्री + उपयोगी= स्त्र्युपयोगी

 

ई+ऐ = यै

देवी+ ऐश्वर्य = देव्यैश्वर्य

 

उ+अ =व

अनु +अय = अन्वय

तनु (दुबला) +अंगी = तन्वंगी

परमाणु +अस्त्र =परमाण्वस्त्र

मधु +अरि =मध्वरि (मधु राक्षस के शत्रु विष्णु)

मनु +अंतर = मन्वंतर

शिशु +अंग= शिश्वंग

सु +अच्छ =स्वच्छ

सु+ अल्प =स्वल्प

सु + अस्ति (है) = स्वस्ति

 

उ+आ =वा

साधु + आचार = साध्वाचार

सु+ आगत = स्वागत

 

उ+ इ = वि

अनु + इष्ट = अन्विष्ट

अनु + इति = अन्विति

धातु + इक = धात्विक

 

उ + ई = वी

अनु + ईक्षण = अन्वीक्षण

अनु + ईक्षा = अन्वीक्षा

 

उ+ए = वे

अनु + एषण (ढूँढना) = अन्वेषण

अनु + एषक = अन्वेषक

 

उ + ओ= वो

लघु + ओष्ठ= लघ्वोष्ठ

 

ऊ+ आ = वा

बंधू +आगमन= बध्यागमन

 

ऋ+असमान स्वर = र्

 

ऋ+ अ = र

पितृ अनुमति = पित्रनुमति 

 

ऋ+ आ = रा

पितृ +आज्ञा = पित्राज्ञा

पितृ + आदेश = पित्रादेश

मातृ + आनंद = मात्रानंद

मातृ + आज्ञा = मात्राज्ञा

 


ऋ+ इ = रि

पितृ + इच्छा = पित्रिच्छा

मातृ + इच्छा = मात्रिच्छा

 

ऋ+उ = रु

पितृ + उपदेश = पित्रुपदेश

मातृ + उपयोगी = मान्नुपयोगी

 


5. अयादि संधि- 

जिस संधि का परिणाम अय् आदि (आय, अव्, आव) होता हो उसे अयादि (अय् + आदि) संधि कहा गया है। , , , के बाद कोई (असवर्ण) स्वर आए तो वह क्रमशः 

ए का अय्,

ऐ का आय्

ओ का अव्

औ का आव् 

जैसे :- 

ने +अन = नयन 

पो + अन = पवन 

नै+अक = नायक 

 पौ + अक = पावक

अयादि सन्धि युक्त पदों का सन्धि-विच्छेद करने के लिए याद रखने योग्य तीन बातें:

                                यदि किसी शब्द में अय्, अव्, आय, आव् में से कोई भी एक ध्वनि निकल रही हो तो उस पद का विच्छेद करने के लिए निम्न तरीका काम में ले सकते हैं: - 

1.सर्वप्रथम अय् / अव् / आय् / आव् की ध्वनि (आवाज) से पहले जो शब्दांश लिख हुआ है, उसे लिख दो। 

2.फिर 'अय् / अव्/आय्/आव्' की ध्वनि के अनुसार क्रमश: 'ए/ओ/ऐ/औ' की मात्रा लगा दो।

3. इसके बाद अय् / अव्/आय् / आव् की ध्वनि को छोड़कर शेष शब्दांश को धन चिह्न (+) के आगे लिख दो।।

जैसे :- 'भावुक' शब्द का सन्धि विच्छेद, इस शब्द में 'आव्' की आवाज निकल रही है तो इसका विच्छेद करने के लिए हम निम्नलिखित प्रक्रिया काम में लेंगे

1. सर्वप्रथम 'आव्' की ध्वनि से पहले लिखे हुए शब्दांश '' को लिख देंगे। 

2.फिर 'आव्' की ध्वनि के कारण इसके '' की मात्रा लगा देंगे। तब 'भौ' हो जाएगा।

3. इसके बाद 'आव्' की ध्वनि को छोड़कर शेष शब्दांश 'उक' को धन चिह्न (+) के आगे लिख दो।

इस प्रकार 'भावुक' का सन्धि विच्छेद' :--

 भौ+उक'  = भावुक

 

ए ऐ + असमान स्वर = अय, आय +स्वर 

ए+ अ = अय

चे + अन =चयन                   ने +अन =नयन

ने + अ = नय (नीति)            शे +अन =शयन

संबे (सम्+चे) + अ = संचय

 

ऐ+ असमान स्वर= आय +स्वर 

गै +अंक = गायक               दै +इनी = दायिनी

दै +अंक = दायक               नै +अक= नायक

गै +अन =गायक               विनै+ अक =विनायक

शै +अक = शायक (वाण)

 

ओ + असमान स्वर = अव + स्वर

ओ + अ, ,ई आदि = अव

गो + अक्षि/अक्ष = गवाक्ष

(गो के बाद यदि) स्वर है तो ओ अपवादस्वरूप अव में बदलता है, किंतु अक्षआक्ष हो रहा है इसीलिए यह संधि अपवाद स्वरूप है।)

गो + इंद्र = गवेंद्र

(अपवाद) (नियमानुसार 'गविंद्र' होना चाहिए था) लेकिन गवेंद्र प्रयुक्त हुआ।

गो + ईश= गवीश

गो + य = गव्य  (गाय से संबंधित दूधादि)

पू + इत्र = पवित्र (ऊ अव में बदला इसलिए अपवाद है।)

पो +अन =पवन

भो +अति =भवति

भो +अन =भवन

हो + अन= हवन

 

औ + असमान स्वर = आव + स्वर 

औ + अ = आव

पौ (पू) + अन= पावन                श्री (श्रु) + अक= श्रावक   

भौ (भू) + अक= भावक               औ + इ = आवि   

भौ (भू) + अना = भावना            औ + इ = आवि   

श्री (यु) + अन = श्रावण          शौ + इक शाविक

पौ अक= पावक                        भो (भू) + उक भावुक

औ+ उ = आवु

 

 

6. स्वर संधि के अपवाद रूप

(i) पहले शब्द के अंतिम स्वर का दिर्घीकरण -

                                                 कुछ शब्दों की संधि में पहले शब्द के अंतिम शब्द पर बल बढ़ जाता है और उसका हस्व स्वर दीर्घ स्वर में बदल जाता है;

जैसे :-

प्रति +कार =प्रतीकार (प्रतिकार शब्द भी सही है)

प्रति +घात =प्रतीघात  (प्रतिघात भी सही है)

प्रति +हारी =प्रतीहारी (द्वारपाल)

मूसल+धार =मूसलाधार

विश्व+ मित्र = विश्वामित्र

 

(ii) दूसरे शब्द का अंतिम स्वर परिवर्तन : - जब दो शब्दों के बीच संधि होती है तो बोलने में पहले शब्द पर बल बढ़ जाने के कारण दूसरे शब्द के अंतिम स्वर का बल कम होता है अत: उसके स्वर में परिवर्तन हो जाता है;

जैसे :-

अहन्+ निशा = अहर्निश        अल्प + इच्छा =अल्पेच्छ   

अहन् + रात्रि = अहोरात्र       दिवा +रात्री =दिवारात्र

यथा+ इच्छा =यथेच्छ          नव+रात्रि =नवरात्र 

 प्रति +अक्षि =प्रत्यक्            सहस्र +अक्षि =सहस्राक्ष (इंद्र)   

उक्त में अक्षि का अक्ष, रात्रि का रात्र हो गया है, अर्थात अंतिम स्वर इ के स्थान पर आ हो गया है। इसी तरह    अहन्+निशा = अहर्निश ,में  के स्थान पर  स्वर हो

 

(iii) पहले शब्द के अंतिम स्वर का लोप :-     कुछ शब्दों में प्रथम शब्द के अंतिम स्वर का लोप हो जाता है; जैसे अप अंग अपांग (आँख की कोर) अपंग (किसी अंग से रहित) सामान्य दीर्घ संधि (अपवाद)

फुल +अटा = फुलटा

पतत् + अंजलि = पतंजलि (त का लोप)

मार्त (भस्म) + अंड = मार्तंड

सार+ अंग =सारंग (पशु, पक्षी)

सीम +अंत = सीमंत (सिर में माँग)

(सीम + अंत= सीमांत (दीर्घ संधि भी)

 

(iv) आरंभिक स्वर में परिवर्तन :-

                                 शब्द के अ, , इक, एय, आयन, य आदि प्रत्यय लगने पर उस शब्द के प्रथम स्वर में इस प्रकार परिवर्तन होता है। इसके अधिक रूप प्रत्ययवाले अध्याय में देखे जा सकते हैं


अ का आ

गंगा+ एय = गांगेय

दंपती+ य= दांपत्य

दशरथ +ई =दाशरथि

दांड्य + आयन =दांड्यायन

मनु +अ = मानव

रघु + अ = राघव

वसुदेव + अ = वासुदेव

व्यवहार +इक= व्यावहारिक

स्वस्थ + य = स्वास्थ्य

 

,, ए का ऐ

ईश्वर + य= ऐश्वर्य

एक + य = ऐक्य

 दिति + य = दैत्य

देव + इक = दैविक

प्रयोग+ इक =प्रायोगिक

नीति + इक =नैतिक 

वेद +इक= वैदिक

 

, , ओ का औ

कुंती+ एय= कौंतेय

योग + इक यौगिक

सुंदर + य = सौंदर्य

सुजन + य सौजन्य

 

ऋ का र

पृथक् + य = पार्थक्य

     पढ़ें:- 

      वाच्य(voice) कर्तृ वाच्य, कर्म वाच्य, भाव वाच्य


(note ;- सुझाव आमंत्रित है )

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